पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (From Jalodbhava to Tundikera) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Tatpurusha, Tanu / body, Tantra / system, Tanmaatraa, Tapa / penance etc. are given here. तत्पुरुष अग्नि ३०४.२५(तत्पुरुष शिव का स्वरूप : श्वेत), गरुड १.२१.५(तत्पुरुष शिव की कलाओं के नाम), नारद १.९१.६७(तत्पुरुष शिव की ४ कलाओं का कथन), लिङ्ग २.१४.७(शिव नाम, प्रकृति का रूप), २.१४.१२(त्वगिन्द्रियात्मक), २.१४.१७(पाणीन्द्रियात्मक), २.१४.२२(स्पर्श तन्मात्रात्मक, समीर जनक), शिव ३.१.१९(शिव के पांच अवतारों में से एक तत्पुरुष का पीतवासा नामक २१वें कल्प में अवतरण, अधिष्ठान तथा स्वामित्व का वर्णन), ६.३.२८(तत्पुरुष शिव की चार कलाओं की प्रणव बिन्दु में स्थिति), ६.६.७० (तत्पुरुष शिव के चार मुखों में चार कलाओं का न्यास), ६.११.१७ (पञ्चवक्त्र शिव के संदर्भ में ईशान मुकुट, तत्पुरुष मुख, अघोर हृदय, वामदेव गुह्य व सद्योजात पाद होने का उल्लेख), ६.१४.४१(तत्पुरुष शिव में प्रकृति, त्वक्, पाणि, स्पर्श व वायु की स्थिति), ६.१६.५९(तत्पुरुष शिव से शान्ति कला की उत्पत्ति), ७.१.३३.४१(तत्पुरुष शिव हेतु हरिताल व गुग्गुल देने का निर्देश), ७.२.३.७(तत्पुरुष शिव की मूर्ति में गुणाश्रयात्मक अव्यक्त की स्थिति), स्कन्द ३.३.१२.९(शिव कवच के अन्तर्गत तत्पुरुष से प्राची दिशा में रक्षा की प्रार्थना ) । tatpurusha
तथोक्ति मार्कण्डेय ५१.३/४८.३(दुःसह व निर्मार्ष्टि की १६ सन्तानों में से एक ) ।
तथ्य मत्स्य ४७.२४३(तथ्य ऋषि के काल के पश्चात् मान्धाता रूप में विष्णु के अवतार का उल्लेख), वायु ९८.९०/२.३६.८९(तथ्य ऋषि के काल के पश्चात् मान्धाता रूप में विष्णु के अवतार का उल्लेख ) । tathya
तनय वायु ४३.२१(तनय/तनपा : भद्र देश के जनपदों में से एक ) ।
तनु ब्रह्माण्ड १.२.८.२१(ब्रह्मा के त्यक्त तनुओं से सन्ध्या, ज्योत्स्ना आदि की उत्पत्ति का कथन), भागवत ६.४.४६(तनु के विद्या होने का उल्लेख), वायु १.७.५१/७.५६(अम्भ: की तनव: संज्ञा के कारण का कथन), विष्णुधर्मोत्तर १.१०७(ब्रह्मा द्वारा सृष्टि उपरान्त तनु त्याग), शिव २.१.८(शब्दब्रह्म तनु नामक अध्याय के अन्तर्गत वर्णमाला के अक्षरों का शरीर के अङ्गों से साम्य), स्कन्द १.२.१३.१८९(शतरुद्रिय प्रसंग में पृथिवी द्वारा मेरु लिङ्ग की द्वितनु नाम से अर्चना का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.२१०.५४(तनु ऋषि द्वारा ऋषभ को शान्ति प्राप्ति हेतु आशा त्याग का उपदेश), ३.१४१.६४(तनु नामक ऋषि का बदरिका वन में निवास, लोमश के पूछने पर तनु द्वारा बदरिका के कुंकुमवापिका गमन का कथन ) ; द्र. देह, भद्रतनु, शरीर, सुतनु । tanu
तन्ति मत्स्य ४६.२७(नन्दन के २ पुत्रों में से एक, सोम वंश), २०१.३८(५ धूम्र पराशरों में से एक), वायु ९६.१८९/२.३४.१८९(तन्तिज : वसुदेव द्वारा तन्तिज व तन्तिमाल पुत्रों को कनक? को देने का उल्लेख ), द्र. तति ।tanti
तन्तिपाल मत्स्य ४६.२७(नन्दन के २ पुत्रों में से एक), वायु ९६.१८९/ २.३४.१८९(तन्तिमाल : वसुदेव द्वारा तन्तिज व तन्तिमाल पुत्रों को कनक? को देने का उल्लेख ) । tantipaala
तन्तु लक्ष्मीनारायण ४.५९.५२(मूलतन्तुक पत्तन के ऋषि भवायन का वृत्तान्त ), द्र. फेनतन्तुtantu
तन्त्र अग्नि ३९.३(आदित्यशीर्ष तन्त्र, त्रैलोक्यमोहन तन्त्र प्रभृति २५ तन्त्रों का नामोल्लेख, तदनुसार देव - प्रतिष्ठा विधान का वर्णन), २९९(बाल - ग्रहों को शान्त करने वाले बालतन्त्र का वर्णन), नारद १.६३.९(सनत्कुमार द्वारा नारद को चतुष्पाद महाभागवत तन्त्र का वर्णन), १.६३.१२(सनत्कुमार द्वारा चतुष्पाद महाभागवत तन्त्र का वर्णन : पशु, पाश, दीक्षा आदि), ब्रह्माण्ड ३.४.२.१०८ (अपर? ब्रह्म के तान्त्रिक होने का उल्लेख), ३.४.१७.४६(तन्त्रिणी : सङ्गीतयोगिनी की शुक व वीणा लिए २ अनुचरियों में से एक), भविष्य ३.२.१४.११(मूलदेव व सुदेव द्वारा नृप के समक्ष अपने को तान्त्रिक नगर का बताना), भागवत १.३.८(नारद रूपी विष्णु द्वारा सात्वत तन्त्र के उपदेश का उल्लेख), ११.३.४७(हृदय ग्रन्थि विमोचन के लिए वैदिक व तन्त्रोक्त पद्धतियों से उपासना का निर्देश), ११.५.२८(द्वापर में कृष्ण की वेदों व तन्त्रों द्वारा उपासना का कथन), ११.५.३१(कलियुग में कृष्ण की नाना तन्त्र विधान से अर्चना का कथन), ११.२७.२६(उभय सिद्धि के लिए वेद व तन्त्र दोनों से परमेश्वर की अर्चना का निर्देश), १२.११.२(विष्णु की तान्त्रिक परिचर्या में विष्णु के अङ्ग उपाङ्ग, आयुधों आदि के प्रतीकार्थों का वर्णन), १२.११.४(वेद व तन्त्रों के आचार्यों द्वारा प्रोक्त वैष्णवी विभूति का वर्णन), १२.११.२९(अविद्या से निर्मित लोकतन्त्र के वर्णन में १२ मासों में सूर्य के रथ का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर १.९२(समस्त अग्नि कर्मों का प्राक् तन्त्र तथा उत्तर तन्त्र का वर्णन), २.१२५(वैदिक तन्त्र विधान), ३.५(निरुक्त आदि), ३.६(युक्तियां - अधिकरण, योग आदि), लक्ष्मीनारायण २.१५७.१५ (तन्त्र का ओष्ठों में न्यास ) । tantra
तन्तुकच्छ कथासरित् ८.२.२२४(प्रह्लाद द्वारा भोज हेतु निमन्त्रित दैत्यराजों में से एक), ८.२.३३९ (सप्तम पाताल के राजा तन्तुकच्छ द्वारा स्वकन्या मनोवती को सूर्यप्रभ को प्रदान करने का उल्लेख ) ।
तन्तुधृक् लक्ष्मीनारायण ४.१०१.११५(कृष्ण - पत्नी मालती का पुत्र ) ।
तन्दुल स्कन्द १.२.४४.७३(तन्दुल द्वारा दिव्यता परीक्षा ) । tandula
तन्द्रा ब्रह्माण्ड ३.४.३५.९६(शंकर की ११ कलाओं में से एक), महाभारत आश्वमेधिक ३१.२(३ तामस गुणों में से एक ) । tandraa
तन्मात्रा अग्नि १७.४(तामस अहंकार से शब्द आदि तन्मात्राओं की क्रमिक सृष्टि), २७.५२(शब्द, स्पर्श आदि तन्मात्राओं के बीज मन्त्र), ५९.१९(पञ्च तन्मात्राओं के बोधक बीजमन्त्रों के न्यास का कथन), देवीभागवत ३.७.२८(तामस अहंकार की द्रव्य शक्ति से शब्द, स्पर्शादि तन्मात्राओं का उद्भव), ७.३२.२७(तन्मात्राओं का क्रमश: प्रस्फुटन, परमेश्वरी - हिमालय संवाद), नारद १.४२.८१(शब्द, स्पर्श, रूप आदि के उपविभागों का वर्णन), ब्रह्मवैवर्त्त १.३.५(परम पुरुष के दक्षिण पार्श्व से आविर्भूत तीन गुणों से महत् तत्त्व, अहंकार तथा पञ्च तन्मात्राओं की उत्पत्ति), ब्रह्माण्ड ३.४.३.७(प्रलय के समय तन्मात्राओं के क्रमिक लय का कथन), भविष्य ३.४.१९.५४(शब्द मात्रा में गणेश, स्पर्श मात्रा में यम, रूप मात्रा में कुमार, रसमात्रा में यक्षराज तथा गन्ध मात्रा में विश्वकर्मा की स्थिति), भागवत २.५.२५(तामस अहंकार में विकार से शब्द आदि पञ्च तन्मात्राओं की उत्पत्ति), ३.२६.३२(तामस अहंकार में विकार से शब्द, स्पर्श आदि पञ्च तन्मात्राओं की उत्पत्ति तथा उनके लक्षणों का कथन), ५.७.२(तामस अहंकार से भूत तन्मात्राओं की उत्पत्ति के समान भरत व पञ्चजनी से पांच पुत्रों की उत्पत्ति का उल्लेख), मत्स्य ३.१८ (शब्द आदि तन्मात्राओं की उत्पत्ति का वर्णन), मार्कण्डेय ४५.३९(तामस अहंकार से शब्द स्पर्शादि तन्मात्राओं की सृष्टि), योगवासिष्ठ ३.१२.१३(पञ्च तन्मात्राओं का वर्णन), लिङ्ग १.७०.३०(तामस अहंकार से तन्मात्र सृष्टि का वर्णन), २.१४.२१(शब्दादि पांच तन्मात्राओं में शिव के ईशानादि ५ रूपों का कथन), वराह ३४.२(उत्पत्ति, पितरों का रूप), वायु ४.५०(तामस अहंकार से तन्मात्राओं तथा भूतसृष्टि का वर्णन), विष्णु १.२.३७ (तामस अहंकार से तन्मात्राओं तथा तन्मात्राओं से जगत् की सृष्टि का वर्णन), १.२.४४(तन्मात्रा की निरुक्ति : तस्मिन् तस्मिंस्तु तन्मात्रं), ६.४.१५(प्राकृत प्रलय होने पर गन्ध, रस आदि तन्मात्राओं के क्रमश: क्षय होने का वर्णन), स्कन्द १.२.३७.९(तामस अहंकार से पांच तन्मात्राओं तथा तन्मात्राओं से पञ्चभूतों की उत्पत्ति), महाभारत वन १८१.१६(शब्द, स्पर्श, रूप आदि के अधिष्ठान का प्रश्न), शान्ति १८४.२८(गन्ध के ९, रस के ६, ज्योति रूप के १६ भेदों का कथन आदि), आश्वमेधिक ४१+ (अहंकार व अहंकार से उत्पन्न पञ्च महाभूतों, अध्यात्म, अधिभूत और अधिदैव का वर्णन ) । tanmaatraa/tanmatra
तन्वर्तु लक्ष्मीनारायण २.२१४.२७(एक ऋषि का नाम ) ।
तप अग्नि ३८१.४४(शारीरिक, वाङ्मय, सात्त्विक, राजसिक व तामसिक तपों के लक्षणों का कथन), गणेश २.१४८.१(कायिक, वाचिक, मानसिक तप के लक्षणों का वर्णन), गरुड १.१२७.६(विस्मय से तप के नष्ट होने का उल्लेख), ३.२१.३(तप की परिभाषा : पूर्वार्जित पापों का अनुतापन), देवीभागवत ११.२३(सान्तपन व्रत विधि), नारद १.४३.७२(तप की मत्सर से रक्षा का निर्देश), पद्म १.३५.४९(द्वापर में तप के वैश्य में तथा कलियुग में तप के शूद्र योनि में प्रवेश का कथन), १.८२.३९(कृतयुग में तप, त्रेता में ज्ञान, द्वापर में यज्ञ व कलियुग में दान का महत्त्व), २.१३.६(तप का स्वरूप), ६.२७.३२(तप की महिमा), ६.५७.३०(कृतयुग में वृषल द्वारा तप करने से वृष्टि न होने का उल्लेख), ब्रह्म २.५६(तप तीर्थ का माहात्म्य : अग्नि व जल में श्रेष्ठत्व के निर्णय की कथा), २.५८(गौतमी के दक्षिण तट पर तपोवन तीर्थ की स्थिति), ब्रह्मवैवर्त्त २.१.७६(तपस्वियों की प्रिय प्रकृति देवी षष्ठी/ मनसा का कथन), २.१४.४९(वास्तविक सीता की अग्नि से वापसी पर सीता की छाया द्वारा तप करने व द्रौपदी का अवतार लेने का वर्णन), ३.३५.७४(ब्राह्मणों के लिए तप धन, तप कल्पतरु, तपस्या कामधेनु होने का कथन, क्षत्रियों की तप में स्पृहा की अप्रशंसा), ब्रह्माण्ड १.२.३२.९८(तप से ऋषिता प्राप्त करने वाले ऋषियों के नाम), ३.४.१.१४(२० सुतपा देव गण में से एक), ३.४.१.१९(२० सुख देवों में से एक), ३.४.१.८५(रोहित गण के १० देवों में से एक), भविष्य ३.४.७.२६(तप से सालोक्य मोक्ष की प्राप्ति), भागवत २.१.२८(विराट् पुरुष के रराट्/ललाट के तपो लोक होने का उल्लेख), ६.४.४६(तप के भगवान् का हृदय होने का उल्लेख), ८.२०.३४(वामन विराट् के द्वितीय पग के तपोलोक से भी परे पहुंचने का उल्लेख), ११.१८.४२(वानप्रस्थी के मुख्य धर्म के रूप में तप व ईक्षा/भगवद्भाव का उल्लेख), ११.१९.३७(तप की परिभाषा : कामनाओं का त्याग), १२.११.३९ (तप/माघ मास में पूषा नामक सूर्य के रथ पर स्थित गणों के नाम), मत्स्य ४.२५(मनु व शतरूपा के ७ पुत्रों में से एक), ९.१७(तामस मनु के तपोमूल, तपोधन, तपोरति, तपस्य, तपोद्युति, तपोभोगी, तपोयोगी नामक पुत्रों का उल्लेख), १४५.४३(तप के लक्षण), वामन ९०.४०(तपोलोक में विष्णु का असित वाङ्मय नाम), ९०.४१(निराकार में विष्णु का नाम तपोमय), वायु १.२.६/२.६ (यज्ञ सत्र में तप के गृहपति होने का उल्लेख), २१.२९/१.२१.२७(तृतीय कल्प का नाम), ३०.९(तप व तपस्य मासों की घोर व शिशिर प्रकृति का उल्लेख), ५०.२०२(तप व तपस्य मासों के उत्तरायण में होने का उल्लेख), ५९.४१(तप के लक्षण), ६९.३३६/२.८.३३६(सुरभि के तप:शीला होने का उल्लेख), ९६.१९०/ २.३४.१९०(वस्तावन के दत्तक पुत्रों में से एक, वसुदेव - पुत्र?), १००.१४/२.३८.१४(२० सुतपा देवों में से एक), १००.१०८/२.३८.१०८(१३वें मन्वन्तर में रौच्य मनु के १० पुत्रों में से एक), १०१.१७/२.३९.१७(७ लोकों के संदर्भ में ६ठे तपो लोक का उल्लेख), १०१.३७/२.३९.३८(योग, तप व सत्य के धारण से पुनर्जन्म से रहित सत्य लोक की प्राप्ति का उल्लेख), १०१.१७८/ २.३९.१७८(भूमि के नीचे ७ नरकों में द्वितीय नरक शीत तप का उल्लेख), १०१.२०८/२.३९.२०७(तप नरक? के शीतात्मा होने का उल्लेख), १०१.२०८/ २.३९.२०७(क्रियाशील मनुष्यों द्वारा व्यक्त को तप आदि से देखने का निर्देश), विष्णु २.७.१४(तपोलोक में दाह वर्जित वैराज देवों की स्थिति का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर ३.११९.१०(तप के समारम्भ में नर - नारायण की पूजा का उल्लेख), ३.२६६(तप की प्रशंसा का वर्णन), शिव १.१७.१११(तप रूपी वृषभ/ नन्दी का उल्लेख), ५.१२.३७(तप के माहात्म्य तथा फल का वर्णन), ५.१९.१४(सात महालोकों में से एक तपोलोक में वैराज देवों की स्थिति ; जनलोक तथा सत्यलोक का मध्यवर्ती लोक), ५.२०.४(तप का माहात्म्य तथा सात्त्विक, राजस, तामस भेद से तप के ३ प्रकार), ७.२.२२.४४(कर्मयज्ञ, तपोयज्ञ, जपयज्ञ, ध्यानयज्ञ तथा ज्ञानयज्ञ नामक पञ्चयज्ञों में उत्तरोत्तर की श्रेष्ठता), स्कन्द १.१.३१.१३(शङ्कर की तुष्टि तप से, ब्रह्मा की कर्म से व विष्णु की यज्ञ, उपवास, व्रत से होने का कथन), १.२.५.१८(केवल विद्या या तप की अपेक्षा दोनों की उपस्थिति होने पर दान प्रतिग्रह की पात्रता होने का कथन), ५.१.६.६ (तपस्वियों द्वारा सकल तथा ज्ञानियों द्वारा निष्कल परम के दर्शन का कथन ), ५.२.८३.१५(बिल्व व कपिल नामक मित्रों में परस्पर वार्तालाप में बिल्व द्वारा दान तथा तीर्थ का प्राधान्य और कपिल द्वारा ब्रह्म व तप के प्राधान्य का प्रतिपादन), ५.३.५१.३५(देव को अर्पण करने योग्य ८ शास्त्रोक्त मानस पुष्पों में से एक), ५.३.१०३.४५(अनसूया को तपाचरण के फलस्वरूप विप्र रूप में रुद्र, विष्णु व ब्रह्मा के दर्शन, अनसूया द्वारा तप की प्रशंसा), ५.३.१८१.१६(क्रोध से तप के नष्ट होने का उल्लेख), ६.२७१.१०८(तपस्वियों का रूप क्षमा होने का उल्लेख), योगवासिष्ठ ३.७२(कर्कटी सूची के तप का वर्णन), ६.१.९०.१९(तप की कांच मणि से उपमा), लक्ष्मीनारायण १.१०९.४३(नर - नारायण के तप के संदर्भ में तप के अर्थ का कथन : घ्राण आदि से अन्य का घ्रातव्य न होना आदि), १.२८३.३६(अनशन के तपों में अनन्यतम होने का उल्लेख), १.४८९.७१(सत्ययुग में तप की श्रेष्ठता का उल्लेख), २.२२७.५९( शारीर, मानस, बुद्धि आदि स्तरों पर तपों का कथन), २.२४५.५७(सत्ययुगी जनों के तपोधर्मपर होने का उल्लेख), ३.२१.६५(तप व भक्ति में श्रेष्ठता का प्रश्न : भक्ति विना आत्यन्तिक श्रेय प्राप्त न होने का कथन), ३.१०९.६(मूर्धन्य कर्म के तप होने का उल्लेख ; मौन व्रत, ब्रह्मचर्य व्रत, अहिंसा व्रत आदि तपों व उनके फलों का वर्णन), ३.११३.१(विभिन्न तपों के फलों का वर्णन), ४.९४(श्रीहरि का पित्रादि देवगणों के वास स्थान तपोलोक में गमन, पूजन का वर्णन), कथासरित् ७.६.१३(तपोदत्त ब्राह्मण द्वारा विद्या प्राप्ति हेतु तप, इन्द्र द्वारा ब्राह्मण वेश में सिकता - सेतु के उद्धरण द्वारा विद्या प्राप्ति हेतु अध्ययन की अनिवार्यता तथा तप की व्यर्थता का प्रतिपादन), १७.४.१२५(तपोधन नामक मुनि का शिष्य के साथ गौरी वन में आगमन, भवितव्यतावश शिष्य द्वारा मुक्ताफलकेतु को शाप देना, तपोधन द्वारा भविष्य का कथन), महाभारत उद्योग ४३.८(तप की व्याख्या, केवल प्रकार के तप की परिभाषा, तप के कल्मष), ४३.११(धृतराष्ट्र - सनत्सुजात संवाद में समृद्ध व असमृद्ध आदि केवल तप का वर्णन), शल्य ४८(भरद्वाज - पुत्री श्रुतावती के तप का वृत्तान्त), शान्ति ११.२१(पक्षी रूप धारी इन्द्र द्वारा तप की व्याख्या), १४.१४(तप युक्त ब्राह्मण तथा दण्ड युक्त क्षत्रिय के शोभा पाने का श्लोक), ७९.१७(तप के यज्ञ से भी श्रेष्ठ होने का उल्लेख ; तप के अहिंसा आदि लक्षणों का कथन), १६१(तप की महिमा ; अनशन, संन्यास आदि के परम तप होने का कथन), २१७.१७(शारीरिक व मानसिक तप की परिभाषा), २२१.३(भीष्म द्वारा युधिष्ठिर हेतु तप के वास्तविक स्वरूप का प्रतिपादन), २५१.११(दान का उपनिषत्/सार तप व तप का त्याग होने का उल्लेख), २३२.३१(द्विजातियों के लिए तप के ही यज्ञ होने का उल्लेख ), २७१.३७(तपोरत ब्राह्मण को दिव्य सिद्धियों की प्राप्ति), २९५.१२(पराशर गीता के अन्तर्गत तप की प्रशंसा), ३०१.६३(तप दण्ड का उल्लेख), ३१८.४१(तप के प्रकृति व अतपा के निष्कल होने का कथन), ३२९.११(तप की क्रोध से रक्षा करने का निर्देश), अनुशासन ५७.१०(अहिंसा, दीक्षा, फलमूल अशन आदि विभिन्न तपों से प्राप्त विभिन्न फलों का कथन), १२१.७(ब्राह्मणत्व के ३ कारणों में से एक), १२२.५(व्यास - मैत्रेय संवाद में तप की प्रशंसा ) ; द्र. दीर्घतपा, प्रतपन, सत्यतपा, सुतपा, सूर्यतपा । tapa
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