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Chandramaa - Chandrashekhara ( words like Chandramaa / moon, Chandrarekhaa etc.)

Chandrashree - Champaka (Chandrasena, Chandrahaasa, Chandraangada, Chandrikaa, Chapahaani, Chapala, Chamasa, Champaka etc.)

Champaka - Chala (Champaa, Chara / variable, Charaka, Charana / feet, Charchikaa, Charma / skin, Charu, Chala / unstable etc. )

Chaakshusha - Chaamundaa  (Chaakshusha, Chaanakya, Chaanuura, Chaandaala, Chaaturmaasa, Chaandraayana, Chaamara, Chaamundaa etc.)

Chaamundaa - Chitta ( Chaaru, Chaarudeshna, Chikshura, Chit, Chiti, Chitta etc.)

Chitta - Chitraratha ( Chitta, Chitra / picture, Chitrakuuta, Chitragupta, Chitraratha etc. )

Chitraratha - Chitraangadaa ( Chitralekhaa, Chitrasena, Chitraa, Chitraangada etc. ) 

Chitraayudha - Chuudaalaa (Chintaa / worry, Chintaamani, Chiranjeeva / long-living, Chihna / signs, Chuudamani, Chuudaalaa etc.)

Chuudaalaa - Chori  ( Chuuli, Chedi, Chaitanya, Chaitra, Chaitraratha, Chora / thief etc.)

Chori - Chhandoga( Chola, Chyavana / seepage, Chhatra, Chhanda / meter, Chhandoga etc.)

Chhaaga - Jataa  (Chhaaga / goat, Chhaayaa / shadow, Chhidra / hole, Jagata / world, Jagati, Jataa / hair-lock etc.)

Jataa - Janaka ( Jataayu, Jathara / stomach, Jada, Jatu, Janaka etc.)

Janaka - Janmaashtami (Janapada / district, Janamejaya, Janaardana, Jantu / creature, Janma / birth, Janmaashtami etc.)

Janmaashtami - Jambu (Japa / recitation, Jamadagni, Jambuka, Jambu etc. ) 

Jambu - Jayadratha ( Jambha, Jaya / victory, Jayadratha etc.)

Jayadhwaja - Jara  ( Jayadhwaja, Jayanta, Jayanti, Jayaa, Jara / decay etc. )  

Jara - Jaleshwara ( Jaratkaaru, Jaraa / old age, Jaraasandha, Jala / water etc.)

 

 

Puraanic contexts of words like Japa / recitation, Jamadagni, Jambuka, Jambu etc. are given here.

Comments on Jambu

जप अग्नि २९३.२६(जप का महत्त्व व विधि - उच्चैर्जपाद्विशिष्टः स्यादुपांशुर्दशभिर्गुणैः । जिह्वाजपे शतगुणः सहस्रो मानसः स्मृतः ॥), कूर्म २.१८.६६ (स्नान काल में वैदिक मन्त्र जप का वर्णन), २.४३.१७ (नन्दी के जप - स्थान जप्येश्वर तीर्थ का वर्णन), देवीभागवत ७.३८.२२ (जप्येश्वर क्षेत्र में त्रिशूला देवी का उल्लेख - जप्येश्वरे त्रिशूला स्यात्सूक्ष्मा चाम्रातकेश्वरे ॥), नारद १.३३.९२ (तीन प्रकार के जप का निरूपण - जपस्तु त्रिविधः प्रोक्तो वाचिकोपांशुमानसः ।। त्रिविधेऽपि च विप्रेन्द्र पूर्वात्पूर्वात्परो वरः ।।) पद्म ३.२६.७५ (किंजप तीर्थ में अप्रमेयत्व प्राप्ति का उल्लेख - किंदाने च नरः स्नात्वा किंजपे च महीपते । अप्रमेयमवाप्नोति दानं यज्ञं तथैव च ।), ब्रह्माण्ड ३.४.३८.३३ (जप की विधि व फल का कथन - लक्षमात्रं जपित्वा तु मनुष्यान्वशमानयेत् ॥ लक्षद्वितयजाप्येन नारीः सर्वा वशं नयेत् ।..), ३.४.४४ (जप से पूर्व न्यास, मुद्रा आदि का वर्णन), वायु ५७.५०(द्विजों के लिए जप यज्ञ का विधान - आरम्भयज्ञा क्षत्रस्य हविर्यज्ञा विशाम्पतेः। परिचार यज्ञाः शूद्रास्तु जपयज्ञा द्विजोत्तमाः ।। ), ५९.४१(तप के ४ लक्षणों में से एक - ब्रह्मचर्यं जपो मौनं निराहारत्वमेव च। इत्येतत् तपसो मूलं सुघोरं तद्दुरासदम् ।। ), विष्णुधर्मोत्तर ३.१२३.५ (कार्य अनुसार जप करने का कथन - नेत्रबाधासु सर्वासु हृषीकेशं तथैव च ।। अच्युतं चामृतं चैव जपेदौषधकर्मणि ।।), ३.१२४ (मास, तिथि, काल अनुसार देव नाम जप का कथन), ३.१२५ (स्थान, देश अनुसार देव नाम का उल्लेख), ३.२७८ (जप महिमा का वर्णन - दार्वासने सुखासीनस्त्वथ वापि कुशासने ।। जप्यं समाहितः कुर्यादथ वापि समुत्थितः ।।), शिव ७.२.२२.४९ (जप, तप, ज्ञान, ध्यान व कर्म से शिवोपासना का वर्णन - कर्मयज्ञस्तपोयज्ञो जपयज्ञस्तदुत्तरः ॥ ध्यानयज्ञो ज्ञानयज्ञः पञ्च यज्ञाः प्रकीर्तिताः ॥), स्कन्द ४.२.९७.१७३ (शातातपेश लिङ्ग की आराधना से महाजप फल प्राप्ति का उल्लेख - शातातपेशस्तद्याम्यां महाजपफलप्रदः ।।), ५.२.२८.११ (धर्म - निष्णात ब्राह्मण - वाक्य से जप आदि के छिद्रों के नाश का उल्लेख - ब्रह्मच्छिद्रं जपच्छिद्रं यच्छिद्रं यज्ञकर्मणि ।। अच्छिद्रं जायते सर्वं ब्राह्मणैरुपपादितम् ।। ), ५.३.१५७.१३  (पूजा से रुद्र, जप - होम से दिवाकर व प्रणिपात से विष्णु के तुष्ट होने का उल्लेख - पूजायां प्रीयते रुद्रो जपहोमैर्दिवाकरः । शङ्खचक्रगदापाणिः प्रणिपातेन तुष्यति ॥ ), ५.३.१६८.३९ (जप का सर्वाधिक फल होने का उल्लेख - होमाद्दशगुणं प्रोक्तं फलं जाप्ये ततोऽधिकम् ॥ त्रिगुणं चोपवासेन स्नानेन च चतुर्गुणम् ।), लक्ष्मीनारायण ३.१८८.२३ (अपजापक : जापक नामक कोषाध्यक्ष की चोरी करने से मुक्ति पाने तक की दीर्घ कथा), ४.८०.१६(नागविक्रम राजा के सर्वमेध यज्ञ में अर्बुदी विप्रों के जापक होने का उल्लेख - जापकाश्चार्बुदा विप्राः पौष्करा हवनार्थिनः । यामुनेया द्विजाश्चासन् दिक्पाला वैष्णवोत्तमाः ।।), कथासरित् ८.२.८३ (काल नामक जापक द्विज द्वारा पुष्कर में जप सिद्धि का वृत्तान्त, इक्ष्वाकु राजा द्वारा वर प्राप्ति आदि), महाभारत शान्ति १९६.१२ (जप रूप निवर्तक यज्ञ का आश्रय लेकर ध्यान, समाधि आदि अवस्थाओं को प्राप्त करने का वर्णन - जपमावर्तयन्नित्यं जपन्वै ब्रह्मचारिकम्। तदर्थबुद्ध्या संयाति मनसा जापकः परम्।।), १९७ (जापक के दोषों के कारण नरक प्राप्त होने का वर्णन - अथैश्वर्यप्रसक्तः सञ्जापको यत्र रज्यते। स एव निरयस्तस्य नासौ तस्मात्प्रमुच्यते।।), १९८ (आत्मकैवल्य के अतिरिक्त अन्य लोकों के जापक के लिए नरक तुल्य होने का वर्णन), १९९ (जप के फल के संदर्भ में अर्थसहित संहिता जप करने वाले ब्राह्मण व राजा इक्ष्वाकु की कथा), २०० (जप के फल के संदर्भ में जापक ब्राह्मण व राजा इक्ष्वाकु द्वारा योग से प्राप्त होने वाले ब्रह्म सायुज्य को प्राप्त करने का वर्णन ) । japa

 

जपा नारद १.६७.६०(जपा पुष्प को विष्णु व शिव को अर्पित करने का निषेध - जपाक्षतार्कधत्तूरान्विष्णौ नैवार्पयेत्क्वचित् ।। केतकीं कुटजं कुंदं बंधूकं केसरं जपाम् ।। मालतीपुष्पक चैव नार्पयेत्तु महेश्वरे ।। ), स्कन्द ६.२५२.३४ (चातुर्मास में जपा वृक्ष का आदित्यों द्वारा वरण - वसुभिः स्वीकृतो नित्यं प्रियालश्च महानगः ॥ आदित्यैस्तु जपावृक्षो ह्यश्विभ्यां मदनस्तथा ॥ ), लक्ष्मीनारायण १.४४१.८८ (आदित्यों के रूप जपा वृक्ष का उल्लेख ) । japaa

 

जमदग्नि कूर्म १.१९.३७ (जमदग्नि द्वारा वसुमना राजा को तपस्या का सुझाव), २.४०.३३ (जमदग्नि तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : स्नान से अश्वमेध फल से तिगुने पुण्य की प्राप्ति), गणेश  १.७७.३ (जमदग्नि द्वारा कामधेनु की सहायता से राजा कार्त्तवीर्य का सत्कार करने की कथा), १.७९.३६ (कार्तवीर्य द्वारा जमदग्नि का वध - लग्ने हृदि महाबाणे प्राणत्यागं चकार सः।रेणुका तं नृपं प्राह ब्रह्महत्या वृथा कृता॥), पद्म १.१९.२६ (हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति पर जमदग्नि की प्रतिक्रिया - प्रतिग्रहसमर्थोपि नादत्ते यः प्रतिग्रहम्। ये लोका दानशीलानां तानाप्नोति शाश्वतान्।..), १.१९.३५७ (मृणाल चोरी पर जमदग्नि की प्रतिक्रिया - परस्य यातु प्रेष्यत्वं तु जन्मनि जन्मनि। सर्वधर्मक्रियाहीनो बिसस्तैन्यं करोति यः।), ३.२१.३५ (जमदग्नि नामक नर्मदा - उदधि सङ्गम तीर्थ का माहात्म्य : इन्द्र को राज्य की प्राप्ति आदि - यत्रेष्ट्वा बहुभिर्यज्ञैरिंद्रो देवाधिपोभवत् ), ६.२४१ (जमदग्नि को इन्द्र पूजा से प्राप्त सुरभि गौ की प्राप्ति हेतु हैहय नरेश द्वारा जमदग्नि का वध, परशुराम की प्रतिज्ञा का वर्णन - सुरभिं देहि मे देव सर्वकामदुघां सदा ), ब्रह्म १०.४९ / १.८.४९ (सत्यवती - पुत्र जमदग्नि द्वारा रेणुका से परशुराम की उत्पत्ति का कथन), ब्रह्मवैवर्त्त ३.२४+ (कपिला गौ की प्राप्ति हेतु कार्त्तवीर्य का जमदग्नि से युद्ध), ३.२७ (कार्त्तवीर्य से युद्ध में जमदग्नि का मरण), ४.७९ (जमदग्नि द्वारा सूर्य को राहुग्रस्त होने व शम्भु से पराजित होने का शाप, सूर्य द्वारा जमदग्नि को क्षत्रिय से मृत्यु का शाप), ब्रह्माण्ड १.२.३२.१०५(१९ मन्त्रवादी भार्गव ऋषियों में से एक), १.२.३८.२७(वैवस्वत मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), २.३.१.९७(वैष्णव अग्नि के जमन से जमदग्नि के जन्म का कथन), भविष्य ३.४.२१.१३ (कण्व - पौत्र के रूप में जमदग्नि के पुनर्जन्म का उल्लेख), भागवत ८.१३.५(वैवस्वत मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), ९.१५+ (चरु  बदलने के प्रसंग के अनन्तर सत्यवती - पुत्र जमदग्नि द्वारा हैहय नरेश का स्वागत, कामधेनु हरण प्रसंग, जमदग्नि मरण की विस्तृत कथा), ९.१५.१३(जमदग्नि व रेणुका के ज्येष्ठ पुत्र वसुमान् व कनिष्ठ पुत्र परशुराम का उल्लेख), ९.१६.५(जमदग्नि द्वारा पुत्र परशुराम को माता रेणुका के वध का निर्देश व पुत्र को वरदान आदि), ९.१६.११(सहस्रबाहु के पुत्रों द्वारा जमदग्नि की हत्या), ९.१६.२४(परशुराम द्वारा अवभृथ स्नान के पश्चात् जमदग्नि को संज्ञान रूपी देह प्राप्ति का उल्लेख - स्वदेहं जमदग्निस्तु लब्ध्वा संज्ञानलक्षणम्  ऋषीणां मण्डले सोऽभूत् सप्तमो रामपूजितः ), मत्स्य ९.२८(वैवस्वत मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), १२६.२१(शिशिर ऋतु में सूर्य रथ के साथ जमदग्नि व विश्वामित्र ऋषियों की स्थिति का उल्लेख), १४५.९९(१९ मन्त्रकार ऋषियों में से एक), १९५.१५, २९(और्व - पुत्र, आप्नुवान - पौत्र, भार्गव गोत्रकारों में से एक), वायु ५२.२०(शैशिर मासों में सूर्य रथ के साथ जमदग्नि व विश्वामित्र की स्थिति का उल्लेख), ६४.२५/२.४.२५(वैवस्वत मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), ६५.९३/२.४.९३(रौद्र व वैष्णव चरु विपर्यय तथा वैष्णव अग्नि के जमन से ऋचीक व सत्यवती - पुत्र जमदग्नि के जन्म का कथन), ६५.९५/२.४.९५(और्व के १०० पुत्रों में ज्येष्ठ पुत्र जमदग्नि का उल्लेख), ९१.६७/२.२९.६४(चरु विपर्यास से जमदग्नि के जन्म का आख्यान ), ९१/२.२९.९० (कामली/रेणुका के जमदग्नि की भार्या बनने का कथन, ऋचीक - पुत्र जमदग्नि द्वारा रेणुका से परशुराम की उत्पत्ति का उल्लेख), विष्णु २.१०.१६(माघ मास में जमदग्नि की सूर्य रथ के साथ स्थिति का उल्लेख), ३.१.३२(वैवस्वत मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), ४.७.३६(चरु विपर्यास से माता सत्यवती से जमदग्नि के जन्म व जमदग्नि व रेणुका से परशुराम के जन्म का आख्यान), विष्णुधर्मोत्तर १.३२ (चरु विपर्यास से जमदग्नि की उत्पत्ति का प्रसंग), १.३५ (जमदग्नि की सत्यवती से उत्पत्ति, जमदग्नि के शराभ्यास करने पर सूर्यताप से रेणुका के पदों के जलने की कथा), स्कन्द ३.१.५.१५०(जमदग्नि द्वारा सहस्रानीक - भार्या मृगावती का पालन), ३.२.९.३१ (जमदग्नि गोत्र के ऋषियों के पांच प्रवर नाम व गुण), ३.२.२३.१० (ब्रह्मा के सत्र में अध्वर्यु), ५.२.६१.३९ (जमदग्नि द्वारा राजा अश्ववाहन को त्यक्त रानी मदनमञ्जरी के महाकालवन गमन का उल्लेख), ५.३.२१८ (जमदग्नि नाम वाले नर्मदा - उदधि संगम तीर्थ का माहात्म्य : परशुराम द्वारा क्षत्रियों के वध के पाप प्रक्षालन हेतु स्थापना), ६.३२ (हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति व बिस चोरी पर जमदग्नि की प्रतिक्रिया - योऽर्थं प्राप्याधमो विप्रः शोचितव्येपि हृष्यति ॥ न पश्यति मन्दात्मा नरकं चा कुतोभयः॥), ६.६६+ (सहस्रार्जुन द्वारा जमदग्नि की कामधेनु के हरण का प्रसंग), ७.१.१९७ (जामदग्न्येश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ७.१.१२१ (जमदग्नि - पुत्र परशुराम द्वारा माता की हत्या कर पितृ आज्ञा का पालन व शिवलिङ्ग स्थापना का वृत्तान्त), ७.१.२५५ (हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति व बिस चोरी पर जमदग्नि की प्रतिक्रिया), हरिवंश १.२७.३६ (चरु विपर्यास से जमदग्नि का जन्म, सत्यवती - पुत्र, रेणुका - पति), लक्ष्मीनारायण १.२४४.१९ (जमदग्नि की निरुक्ति - यत्कुट्यां मूर्तिमानग्निर्जमत्यर्पितभोजनम् जमदग्निः वै ख्यातो नर्मदातटमावसन् ), १.३८१ (जमदग्नि द्वारा कार्त्तवीर्य का स्वागत, कामधेनु न देने पर मरण, भृगु द्वारा मृतसंजीवनी विद्या से पुनर्जीवन, स्वर्ग गमन का वर्णन), १.४३४.६६ (सहस्रानीक - भार्या को जमदग्नि द्वारा पोषण व आश्वासन देने का कथन), १.४५७ (कार्त्तवीर्य द्वारा जमदग्नि को मार कर कामधेनु हरण करने का उल्लेख), १.५०६.४९ (ऋचीक द्वारा पत्नी को प्रदत्त चरु बदलने से जमदग्नि के जन्म का प्रसंग), १.५५७.९२ (जमदग्नि आश्रम का वर्णन), कथासरित् २.१.६३ (जमदग्नि द्वारा मृगावती को शरण व आश्वासन देना), २.१.८२ (जमदग्नि आश्रम में उदयन का वर्णन), २.२.२०३ (जमदग्नि द्वारा सहस्रानीक को पुत्र सहित भार्या मृगावती सौंपने का उल्लेख), ६.४.४८ (जमदग्नि द्वारा मृगावती को आश्रय देने का कथन ) । jamadagni, द्र. रेणुका

जमदग्नि-एक ब्रह्मर्षि; जो सत्यवती और ऋचीक ऋषि के पुत्र, और्व के पौत्र तथा महर्षि च्यवन के प्रपौत्र थे; ये ऋचीक के सौ पुत्रों में बड़े थे। इनके भी चार पुत्र थे, जिनमें सबसे छोटे परशुराम जी थे ( आदि० ६६ ॥ ४५-४९ ) । जमदग्नि जी अर्जुन के जन्मोत्सव में पधारे थे ( आदि० १२२ ॥ ५१(३३) ) । ये ब्रह्माजी की सभा में विराजते हैं (सभा० ११ ॥ २२ ) । इनके सत्यवती के गर्भ से जन्म की कथा( वन० ११५ ॥ ४३ ) । इनकी राजा प्रसेनजित् से रेणुका की माँग और उसके साथ विवाह ( वन ० ११६ ॥ २ ) । इनको अपनी पत्नी रेणुका के गर्भसे पाँच पुत्रों की प्राति ( वन ० ११६ ॥ ४ ) । इनका रेणुका का वध करने के लिये पुत्रों को आदेश ( वन ० ११६ ॥ ११ ) । माता का वध कर देने पर परशुराम को इनका वरदान (वन० ११६ ॥ १८ ) । कार्तवीर्य के पुत्रों द्वारा इनका वध (वन० ११६ ॥ २८; शान्ति० ४९ ॥ ५०) । द्रोणाचार्य के पास आकर इनका उनसे युद्ध बंद करने को कहना (द्रोण० १९० ॥ ३५-४० ) । इनके जन्म का प्रसंग ( शान्ति० ४९ ॥ २९ ) । इनसे परशुराम का जन्म ( शान्ति० ४९ ॥ ३१-३२ ) । इनका वृषादर्भि से प्रतिग्रह के दोष बताना (अनु० ९३ ॥ ४४ ) । अरुन्धती से अपने मोटे न होने का कारण बताना ( अनु० ९३ ॥ ६४ ) || यातुधानी से अपने नाम की व्याख्या बताना ( अनु० ९३ । ९४(१४२.३७) - जाजमद्यजजानेऽहं जिजाहीह जिजायिषि। जमदग्निरिति ख्यातं ततो मां विद्धि शोभने।। ) । मृणाल की चोरी के विषयमें शपथ खाना ( अनु० ९३ ॥ १२०-१२१(१४२.६४) - पुरीषमुत्सृजत्वप्सु हन्तु गां चैव द्रुह्यत्।अनृतौ मैथुनं यातु बिसस्तैन्यं करोति यः।।) । अगस्त्यजी के कमलों की चोरी होने पर शपथ खाना ( अनु० ९४ ॥ २५(१४३.२५) - अनध्यायेष्वधीयीत मित्रं श्राद्धे च भोजयेत्। श्राद्धे शूद्रस्य चाश्नीयाद्यस्ते हरति पुष्करम्।।) । रेणुका के पैर और मस्तक के संतप्त होने से सूर्य पर कोप करना ( अनु० ९५ ॥ १८(१४४.१८) ) । इनका शरणागत सूर्य को अभयदान देना ( अनु० ९६ ॥ ८-१२(१४५.८) ) । इनके द्वारा धर्म के रहस्य का वर्णन ( अनु० १२७ ॥ १७-१९ ) । ये उत्तर दिशा के ऋषि हैं ( अनु० १६५ ॥ ४४(२७१.४४) ) । धर्म द्वारा जमदग्नि के क्रोध की परीक्षा, जमदग्नि का क्रोध पर विजय ( आश्व० ९२ ॥ ४१-४६(९५.३) ) ।

महाभारत में आये हुए जमदग्नि के नाम-आर्चीक; भार्गवः, भार्गवनन्दनः, भृगुशार्दूलः, भृगुश्रेष्ठः, भृगूत्तमः, ऋचीकपुत्र, ऋचीकतनय आदि

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जम्बीर नारद १.९०.७१(जम्बीर द्वारा देवी पूजा से महिष सिद्धि का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.६३(पुत्र प्राप्ति हेतु श्री हरि को जम्बीर फल आदि अर्पित करने का निर्देश ) ।

 

जम्बुक गरुड २.४६.२३(द्विजों को अर्थ दान की प्रतिज्ञा कर न देने पर जम्बुक बनने का उल्लेख), पद्म १.२८ (जम्बुकी वृक्ष : कन्या - दाता), भविष्य ३.३.८.२३ , ३.३.९.२६ (जम्बुक द्वारा महावती नगरी पर विजय प्राप्ति का कथन), ३.३.१२.१२४ (पूर्व जन्म में शृगाल राजा) ३.३.१२.१२५ (कृष्णांश की माता देवकी द्वारा जम्बुक का वध), वराह १३६.९ (जम्बुक योनि प्राप्ति के कारण का उल्लेख), १३७ (पूर्व जन्म में शृगाली व गृध्र द्वारा मनुष्य शरीर प्राप्ति की कथा), स्कन्द ४.२.९७.१५९ (तिर्यक् योनि निवारक जम्बुकेश लिङ्ग का उल्लेख), ५.२.५३.१७ (राजा विश्वेश के १२ पूर्व जन्मों के वृत्तान्त के अन्तर्गत ९वें जन्म में जम्बुक होने आदि का कथन), महाभारत शान्ति

१५३.६५(जम्बुक द्वारा मृत बालक के जीवित होने की संभावना व्यक्त करना), लक्ष्मीनारायण २.२१५.६१(मृत बालक के शव को श्मशान में त्यागने के सम्बन्ध में जम्बुक और गृध्र के विरोधी कथनों का वर्णन), ३.२२७.४९ (अहंकार का प्रतीक), ४.६७.६३ (प्रसाद खाकर जम्बुक द्वारा दिव्य पुरुष हो जाने का कथन), कथासरित् ७.६.२८ (इन्द्र द्वारा जम्बुक / सियार रूप धारण करने का उल्लेख), १०.४.१९ (करटक व दमनक नामक दो जम्बूकों का कथन ) । jambuka

 

जम्बुकाक्ष ब्रह्माण्ड ३.४.२५.२९ (विषङ्ग - सेनापति जम्बुकाक्ष का उल्लेख), ३.४.२५.९८ (भण्डासुर - सेनापति जम्बुकाक्ष का नीलपताका देवी द्वारा वध ) ।

 

जम्बुमाली वा.रामायण ५.४४.१ (प्रमदावन में हनुमान द्वारा प्रहस्त - पुत्र जम्बुमाली के वध का वर्णन ) ।

 

जम्बू कूर्म १.४३.१६/१.४५.१८ (जम्बू वृक्ष से बनी  जम्बू नदी व जाम्बूनद सुवर्ण का कथन), १.४५ (जम्बू द्वीप के अन्तर्गत भुवनकोश विन्यास का वर्णन, मेरु व मेरु के परित: पर्वतों व वर्षों का दिशा अनुसार विन्यास), गरुड २.२२.५९/२.३२.११३ (जम्बू द्वीप की अस्थियों में स्थिति), देवीभागवत ८.५ (जम्बू द्वीप का वर्णन, जम्बू द्वीप के अन्तर्गत वर्ष, पर्वत आदि), ८.६ (जम्बू वृक्ष की मेरु मन्दर पर्वत पर स्थिति  व महिमा), नारद १.५६.२०४ (जम्बू वृक्ष की रोहिणी नक्षत्र से उत्पत्ति), पद्म ३.३.३० (मेरु के परित: स्थित भद्राश्व, केतुमाल आदि चार द्वीपों में से एक), ३.४.१९ (सुदर्शन नामक महान् सनातन जम्बू वृक्ष के कारण जम्बू द्वीप के प्रख्यात होने का कथन), ३.८.४ (जम्बू पर्वत के विष्कम्भ / व्यास के परिमाण का कथन ; लवण समुद्र का विष्कम्भ जम्बू द्वीप से २ गुना होने का कथन), ६.१३३ (जम्बू द्वीप के विभिन्न तीर्थों तथा उनके स्थानों के नाम), ब्रह्म १.१७.१९ (जम्बू द्वीप में भारत की प्रशस्ति), ब्रह्माण्ड १.२.१४.४३ (जम्बू द्वीप के जनपद व वर्षों के नाम, आग्नीध का जम्बू द्वीप का राजा अभिषिक्त होना), १.२.१७.२२ (सुदर्शन नामक जम्बू वृक्ष से नि:सृत जम्बू रसवती नदी का कथन), १.२.१८.६९(चन्द्रप्रभ ह्रद से नि:सृत जम्बू नदी का उल्लेख), भविष्य ३.४.२४.७९ (जम्बू द्वीप की द्वापर के चतुर्थ चरण में स्थिति), मत्स्य ११४.७५ (सुदर्शन नामक जम्बू / जामुन वृक्ष का वर्णन), १२१.६७ (जम्बू नदी का कथन), मार्कण्डेय ५४ (जम्बू द्वीप के पर्वतों, नदियों आदि का वर्णन), लिङ्ग १.४३.४७ (जाम्बू नद का प्रादुर्भाव), वराह ७५.९(जम्बू द्वीप का विस्तृत वर्णन ), ७७.२२ (अमृत तुल्य जम्बू फल के रस की जम्बू नदी से जम्बू द्वीप होने का वर्णन), ८५.६ (जम्बू द्वीप का भोगौलिक वर्णन), ९०.४२(जम्बू द्वीप में विष्णु की चतुर्बाहु नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख), वायु ३४+ (जम्बू द्वीप का वर्णन), ४६.२४ (इलावृत वर्ष में सुदर्शन नामक जम्बू वृक्ष व जम्बू नदी की महिमा), वामन १३ (जम्बू द्वीप का वर्णन, सुकेशि - ऋषि संवाद), ९०.४२ (जम्बू द्वीप में विष्णु का चतुर्बाहु नाम से वास), विष्णु २.२.७ (जम्बू द्वीप व जम्बू वृक्ष की महिमा), विष्णुधर्मोत्तर १.७.२४ (जम्बू वृक्ष, जम्बू नदी, पर्वत व वर्षों का वर्णन), शिव ५.१७.१५ (जम्बू द्वीप में विशाल जम्बू वृक्ष व जम्बू नदी का कथन), स्कन्द ५.२.४५.६९ (जम्बू मार्ग में मरण से कपोत दम्पत्ति को जन्मान्तर में उच्च कुल की प्राप्ति), ६.२५२.२६(चातुर्मास में जम्बू वृक्ष में मेघों की स्थिति तथा जम्बू वृक्ष व फल के महत्त्व का कथन), ७.१.११ (जम्बू द्वीप का वर्णन, वर्ष विभाग), ७.३.६० (जम्बू तीर्थ का प्रभाव : जम्बू द्वीप के समस्त तीर्थों का लोमश द्वारा एकत्रीकरण) लक्ष्मीनारायण १.४४१.८७ (वृक्ष रूप कृष्ण के दर्शन हेतु मेघों का जम्बू वृक्ष बनने आदि का उल्लेख), १.४६३.५२ (गरुड द्वारा गज व कच्छप को ग्रहण कर भक्षण के लिए मेरु पर स्थित जम्बू वृक्ष की शाखा पर बैठना, शाखा का भङ्ग होना आदि), कथासरित् १२.२.९९ (जम्बू वृक्ष से गिरे फल से दिव्य कन्या के निकलने का वर्णन), १८.४.५९ (चन्द्रस्वामी द्वारा जम्बू वृक्ष पर फंसी बन्दरी को मुक्त करना, बन्दर से प्राप्त अलौकिक फल खाकर जरा रोग से मुक्त होने का वर्णन ) । jambu/jamboo/jambuu

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