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Chandramaa - Chandrashekhara ( words like Chandramaa / moon, Chandrarekhaa etc.)

Chandrashree - Champaka (Chandrasena, Chandrahaasa, Chandraangada, Chandrikaa, Chapahaani, Chapala, Chamasa, Champaka etc.)

Champaka - Chala (Champaa, Chara / variable, Charaka, Charana / feet, Charchikaa, Charma / skin, Charu, Chala / unstable etc. )

Chaakshusha - Chaamundaa  (Chaakshusha, Chaanakya, Chaanuura, Chaandaala, Chaaturmaasa, Chaandraayana, Chaamara, Chaamundaa etc.)

Chaamundaa - Chitta ( Chaaru, Chaarudeshna, Chikshura, Chit, Chiti, Chitta etc.)

Chitta - Chitraratha ( Chitta, Chitra / picture, Chitrakuuta, Chitragupta, Chitraratha etc. )

Chitraratha - Chitraangadaa ( Chitralekhaa, Chitrasena, Chitraa, Chitraangada etc. ) 

Chitraayudha - Chuudaalaa (Chintaa / worry, Chintaamani, Chiranjeeva / long-living, Chihna / signs, Chuudamani, Chuudaalaa etc.)

Chuudaalaa - Chori  ( Chuuli, Chedi, Chaitanya, Chaitra, Chaitraratha, Chora / thief etc.)

Chori - Chhandoga( Chola, Chyavana / seepage, Chhatra, Chhanda / meter, Chhandoga etc.)

Chhaaga - Jataa  (Chhaaga / goat, Chhaayaa / shadow, Chhidra / hole, Jagata / world, Jagati, Jataa / hair-lock etc.)

Jataa - Janaka ( Jataayu, Jathara / stomach, Jada, Jatu, Janaka etc.)

Janaka - Janmaashtami (Janapada / district, Janamejaya, Janaardana, Jantu / creature, Janma / birth, Janmaashtami etc.)

Janmaashtami - Jambu (Japa / recitation, Jamadagni, Jambuka, Jambu etc. ) 

Jambu - Jayadratha ( Jambha, Jaya / victory, Jayadratha etc.)

Jayadhwaja - Jara  ( Jayadhwaja, Jayanta, Jayanti, Jayaa, Jara / decay etc. )  

Jara - Jaleshwara ( Jaratkaaru, Jaraa / old age, Jaraasandha, Jala / water etc.)

 

 

Puraanic contexts of words like Chaaru, Chaarudeshna, Chikshura, Chit, Chiti, Chitta etc. are given here.

चारण भागवत ७.८.३८, ५१ (हिरण्यकशिपु के वध पर चारणों द्वारा नृसिंह की स्तुति), लक्ष्मीनारायण २.१०४.२६ (चारणों के प्रदेश गान्धर्व देश का उल्लेख), २.१२४.८२(चारण के लिए यज्ञ में वषट् व्याहृति का प्रयोग), २.२७१.२८ (पशुचारणी सती के चोरों द्वारा धर्षण व देवी द्वारा रक्षा का वृत्तान्त), ३.१९.३० (चारण भक्त रक्षालय की सती पत्नी सन्तयोगिनी द्वारा वैमानिक देवों को भस्म करने का वृत्तान्त ) । chaarana

 

चारायण स्कन्द ४.२.७६.१३८ (चारायण - कन्या का वृत्तान्त), ६.२७८ (याज्ञवल्क्य - पिता ) । chaaraayana

 

चारित्र पद्म १.४०.८८ (चारित्र मरुत का नामोल्लेख ) ; द्र. चरित्र ।

 

चारु - अग्नि २०० (राजा चारुधर्म की पत्नी द्वारा दीपदान का कथन), ब्रह्माण्ड २.३.७.२३७(चारुरूप व चारुहासवान् : प्रधान वानरों में चारुरूप व चारुहासवान् का नामोल्लेख), २.३.७१.२४६(कृष्ण व रुक्मिणी के चारु, चारुभद्र आदि पुत्रों के नामों का उल्लेख), भागवत ९.२०.२(चारुपद : नमस्यु - पुत्र, सुद्यु - पिता, पूरु वंश), १०.६१.८(कृष्ण व रुक्मिणी के पुत्रों के रूप में चारुदेष्ण, चारुदेह, सुचारु, चारुगुप्त, भद्रचारु, चारुचन्द्र, विचारु व चारु का उल्लेख), १०.६१.९(कृष्ण व रुक्मिणी के १० पुत्रों में से एक), मत्स्य ४७.१६(चारुभद्र व चारुहास : कृष्ण व रुक्मिणी के पुत्रों में से दो), १६१.७५(चारुकेशी : हिरण्यकशिपु की सभा में उपस्थित अप्सराओं में से एक चारुकेशी का उल्लेख), मार्कण्डेय १३३.९(चारुवर्मा : दशार्णाधिपति चारुवर्मा द्वारा कन्या सुमना का स्वयंवर करने का वृत्तान्त), वामन ५७.८२ (चारुवक्त्र : मनोहरा नदी द्वारा कुमार को प्रदत्त चारुवक्त्र गण का उल्लेख), वायु ६९.१०/२.८.१०(चारुमुखी : गन्धर्वों की एक पुत्री का नाम), ९६.२३७/२.३४.२३७(कृष्ण व रुक्मिणी के चारु, चारुभद्र, भद्रचारु, चारुविन्ध्य आदि पुत्रों का नामोल्लेख), विष्णु ५.२८.२(कृष्ण व रुक्मिणी के चारु, चारुभद्र, चारुविन्द, चारुदेह आदि पुत्रों का नामोल्लेख), ५.३७.४७ (चारुक व चारुवर्मा : प्रभास में यादवों के संघर्ष में चारुक व चारुवर्मा की मृत्यु का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.२०९.२६ (चारुलाष ऋषि के साथ रायवाकक्षक नृप द्वारा श्रीहरि को तूर्यपदापुरी चलने की प्रार्थना का उल्लेख), कथासरित् १२.५.२३८ (शुक राजा हेमप्रभ का प्रतिहार चारुमति ) । chaaru

 

चारुगुप्त भागवत १०.६१.८(कृष्ण व रुक्मिणी के पुत्रों में से एक), मत्स्य ४७.१६(वही), विष्णु ५.२८.१(वही) ।

 

चारुदेष्ण गरुड ३.९.३(१५ अजान देवों में से एक), देवीभागवत ५.१८.८ (मद्र देश का राजा, दुराचारी, मन्दोदरी से विवाह), ब्रह्माण्ड २.३.७१.१९१(कृष्ण द्वारा अनपत्य गण्डूष को प्रदत्त २ पुत्रों में से एक), २.३.७१.२४५(कृष्ण व रुक्मिणी के पुत्रों में से एक), भागवत ३.१.३५(सत्यभामा - पुत्र), १०.६१.८(कृष्ण व रुक्मिणी के १० पुत्रों में से एक), मत्स्य ४६.२६(कृष्ण व जाम्बवती? के पुत्रों में से एक), ४७.१५(कृष्ण व रुक्मिणी के पुत्रों में से एक), वायु ९६.१८८/२.३४.१८८(कृष्ण द्वारा स्वपुत्र चारुदेष्ण को अनपत्य गण्डूष को देने का उल्लेख), ९६.२३७/२.३४/२३७(कृष्ण व रुक्मिणी के पुत्रों में से एक), विष्णु ४.१५.३७(कृष्ण के १३ प्रधान पुत्रों में से एक), ५.२८.१(कृष्ण व रुक्मिणी के पुत्रों में से एक), हरिवंश १.३४.३४ (रुक्मिणी व कृष्ण - पुत्र, चारुदेष्ण के चारुदेष्ण नाम प्राप्ति का कारण ) । chaarudeshna

 

चारुधि गर्ग ७.३०.२३ (अरुधि पर्वत की नै:श्रेयस वन में स्थिति का उल्लेख ) ।

 

चारुमती ब्रह्माण्ड २.३.७१.२४६(कृष्ण व रुक्मिणी - पुत्री, बली - पत्नी), भागवत १०.६१.२४(कृष्ण व रुक्मिणी - पुत्री, बली - पत्नी), मत्स्य ४७.१६(कृष्ण व रुक्मिणी - पुत्री), वायु ९६.२३८/२.३६.२३८(कृष्ण व रुक्मिणी - पुत्री), विष्णु ५.२८.२(वही) । chaarumatee/chaarumati/ charumati

 

चारुहास ब्रह्माण्ड २.३.७.२३८(चारुहासवान् : प्रधान वानरों में से एक), मत्स्य ४७.१६(कृष्ण व रुक्मिणी के पुत्रों में से एक), विष्णु ५.२८.५(चारुहासिनी : कृष्ण की प्रधान पत्नियों में से एक ) । chaaruhaasa

 

चाष पद्म ६.८८.१४ (सत्यभामा के घर कृष्ण द्वारा कल्पवृक्ष लगाने के संदर्भ में गरुड के भूमि पर गिरे पंख से चाष / नीलकंठ पक्षी आदि के उत्पन्न होने का कथन), वामन ५७.८८ (पृथूदक तीर्थ द्वारा स्कन्द को चाषवक्त्र नामक गण प्रदान करने का उल्लेख ) । chaasha

 

चिकित्वान् ब्रह्माण्ड १.२.३६.११(१२ तुषित देवों में से एक, तुषिता व क्रतु - पुत्र )

 

चिकित्सक स्कन्द ७.१.१२९.२१ (चिकित्सक का अन्न पूय समान होने का उल्लेख ) ।

 

चिकित्सा गरुड १.१६८+ (चिकित्सा शास्त्र का वर्णन),१.२०१ (हय चिकित्सा का वर्णन), १.२०१.३३ (गज चिकित्सा का कथन), विष्णुधर्मोत्तर १.५२(स्त्री चिकित्सा का वर्णन ) । chikitsaa

 

चिक्लीत लक्ष्मीनारायण ३.२५.४ (चिक्लीत सहित पांच भक्तों द्वारा प्रसविष्णु असुर को दान में लक्ष्मी देने का वर्णन, भविष्य के ५ इन्द्रों में से एक ) । chikleeta

 

चिक्षुर देवीभागवत ५.५.३१ (महिषासुर - सेनानी चिक्षुर द्वारा इन्द्र से युद्ध व पराजय का कथन), ५.१४ (देवी द्वारा चिक्षुर से युद्ध व वध का वर्णन), ब्रह्माण्ड ३.४.२९.७६(चिक्षुभ : भण्ड असुर के  असुरास्त्र से उत्पन्न दानवों में से एक), मार्कण्डेय ८२ (महिषासुर - सेनानी चिक्षुर),  वामन २०.२३ (चिक्षुर द्वारा कात्यायनी से युद्ध व मरण), ३१.६१ (बलियज्ञ में विष्णु द्वारा चिक्षुर का वध ) chikshura

 

चिच्चिक ब्रह्म २.९४.३ / १६४ (भेरुण्ड उपनाम वाले चिच्चिक पक्षी द्वारा पवमान नृप से संवाद, गदाधर तीर्थ में गौतमी स्नान से मुक्ति ), chichchika

 

चिञ्चा लक्ष्मीनारायण २.२१४.९ (श्रीकृष्ण के साथ वायुशृङ्ग ऋषि द्वारा चिञ्चापुरी उद्यान में जाने का कथन), कथासरित् १.३.९ (चिञ्चिनी नगरी में भोजिक नामक ब्राह्मण के दौहित्र पुत्रक द्वारा पाटलीपुत्र की रचना का वर्णन ) chinchaa

 

चित् गणेश १.७.८ (चिद्रूप वैश्य के दुष्ट पुत्र कामन्द का वृत्तान्त : पुत्र को शिक्षा देने पर पुत्र द्वारा चिद्रूप की हत्या), ब्रह्माण्ड ३.४.३९.९(चित्परा : काञ्ची में कामाक्षी देवी का आद्य नाम, द्वितीय नाम शुद्धपरा), शिव ६.१६.५४ (पराशक्ति से चित् व चित् से आनन्द शक्तियों का उद्भव), योगवासिष्ठ ३.६२.८ (ब्राह्मी चित् शक्ति द्वारा नियति कहलाने वाली चिति शक्ति में स्पन्दन उत्पन्न करने का वर्णन), ३.६५.९ (चित् - उन्मुखता से चित्त तथा चित्त से जीवत्व कल्पन का उल्लेख), ४.४२.९(चित् शक्ति का वर्णन), ५.१३.८७(मन द्वारा चित् शक्ति व स्पन्द/प्राण शक्ति के बीच सम्बन्ध स्थापित करने का कथन), ६.१.७८.२५ (जीव रूपी बालक के चिद्रूप द्वारा जीवित रहने का कथन), ६.१.७८.३२ (महाचित्  की व्याख्या), ६.२.६२ (चिदैक्य नामक सर्ग : साकार द्रष्टा द्वारा स्वप्न और निराकार चिद्व्योम द्रष्टा द्वारा सर्ग स्वप्न देखने का कथन ) । chit

 

चिता गरुड २.१५.३७(चिता पर पिण्डदान का निहितार्थ), स्कन्द ३.३.१७.२८ (चण्डक नामक शबर को शिवपूजन हेतु चिता भस्म न मिलने पर पत्नी द्वारा अग्नि प्रवेश का कथन), ७.१.२३७.९५ (यादवों की गव्यूति मात्र चिता का वर्णन), महाभारत स्त्री २३.३८(द्रोणाचार्य की चिता का कथन), कथासरित् १८.५.८ (कापालिक द्वारा चिता से स्त्री को जीवित करने आदि का वर्णन ) chitaa

 

चिति ब्रह्माण्ड २.३.४.२(चित व सुचिति : ब्रह्मा के मुख से सृष्ट जयदेवों में से दो), लिङ्ग १.७०.२२ (चिति शब्द की निरुक्ति), वायु ४.३७ /१.४.३५(चिति शब्द की निरुक्ति, मन का नाम चिति), २१.५३ (ब्रह्मा द्वारा ध्यान करते समय उत्पन्न होने के कारण प्रजापति की कन्या का चिति व पुत्र का चिन्तक नाम होने का उल्लेख), विष्णु १.८.२१ (सर्वव्यापक भगवान व लक्ष्मी को यूप व चिति रूप बताकर उनके नित्य होने का वर्णन), स्कन्द ४.१.२९.५८ (चितिरूपा : गङ्गा सहस्रनाम), योगवासिष्ठ ३.१४.७२(जगत के चित् होने के परिणामों का कथन), ४.१८.४५ (चित् की सिद्धि पर जीव के चिति होने का उल्लेख), ६.२.८४.७ (चिदाकाश रूप शिव की इच्छा शक्ति व क्रिया शक्ति चिति का वर्णन), ६.२.८५.२ (क्रिया रूप चिति शक्ति के आयुधों का कथन), ६.२.८५.२५(चिति द्वारा परम पुरुष के दर्शन तक भ्रमण करते रहने का कथन), हरिवंश ३.३४.३४(यज्ञवराह के चितिमुख होने का उल्लेख),  लक्ष्मीनारायण १.३८२.२२(विष्णु के यूप व लक्ष्मी के चिति होने का उल्लेख), ४.९५.४(चिति व विचित्ति : जय नामक देवगण के देवों में से दो ) । chiti

 

चित्त पद्म ५.९९.३८ (जन्तु के चित्त की शिशु से उपमा), ब्रह्माण्ड ३.४.१९.१९( चित्तकर्षणिका : चन्द्रमा की १६ कला रूपी शक्तियों में से एक), ३.४.३६.७०(चित्तकर्षिका : चन्द्रमा की कर्षण वाली १६ कलाओं में से एक), ३.४.४४.११९(चित्तकर्षिका : १६ नित्या कलाओं में से एक), भविष्य ३.४.२५.३०(ब्रह्माण्ड के सद्गुणों से चित्त रूपी स्वायम्भुव मनु तथा चित्त से त्रैलोक्य की  उत्पत्ति का उल्लेख), भागवत ११.१३.१७ (मुक्तिपद प्राप्ति हेतु चित्त और गुणों को अलग करने के प्रश्न को कृष्ण द्वारा निरर्थक बताना), मत्स्य १७९.२८(चित्ता व चित्तजला : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मानस मातृकाओं में से दो), महाभारत आश्वमेधिक २१.६(चित्त के स्रुवा होने का उल्लेख), योगवासिष्ठ १.१६ (चित्त दोषों का वर्णन), १.१८.१२(चित्त की मर्कट से उपमा), ३.६३ (चित्त विकार), ३.६४.२६ (चित्त के स्वभाव से स्फुúरित होने और कर्म से बंधने का कथन), ३.६५.९ (चित् से चित्त व चित्त से जीवत्व के कल्पन का कथन), ३.६५.१२ (जीव व चित्त में भेद न होने के अनुरूप देह व कर्म में भेद न होने का कथन), ३.८४.३९(चित्त के चिद् और जड भाग के विषय में कथन), ३.९८+ (चित्त के निरोध से शोक का अन्त होने के संदर्भ में महा अटवी में स्वयं पर प्रहार करते हुए भीमकाय पुरुषों का आख्यान), ३.९९.५ (भीमकाय पुरुषों के मन होने का उल्लेख), ३.९९.१२ (कदली कानन, करञ्जवन आदि में भ्रमण करने वाले चित्तों की प्रकृति का कथन), ३.९९.३१(विवेक द्वारा चित्त को बलात् ग्रहण करने का निर्देश व आख्यान), ३.११०(चिकित्सापूर्वक चित्त का वर्णन), ३.१११ (चित्त चिकित्सा), ३.१२१ (चित्त के अभाव का प्रतिपादन), ५.११ (जनक द्वारा चित्त का अनुशासन), ५.१४.५८ (स्वचित्तनिरूपण के अन्तर्गत चित्त की शान्ति का प्रतिपादन), ५.२४.१७ (चित्त पर विजय की युक्ति), ५.८०.२६(चित्त की वेताल संज्ञा), ६.१.२९.८ (संसार चक्र की नाभि चित्त के निरोध का निर्देश), ६.१.२९.४३ (चित्त की वेताल संज्ञा), ६.१.४४ (चित्त सत्ता का वर्णन), ६.१.५६ (चित्त द्वारा चित्र का चित्रण किए जाने के कारण ही जगत की चित्रता दिखाई देने का वर्णन), ६.१.९०.१५ (चित्त और चिन्ता में तादात्म्य का कथन), ६.१.९३.३२ (चित्त की सर्व संज्ञा का वर्णन), ६.१.९४.५ (वासना के चित्त का पर्याय होने का कथन), ६.१.९४.१४ (चित्त वृक्ष का वर्णन), ६.१.१००.१७ (अज्ञान भ्रान्ति का चित्त नाम होने का कथन), ६.१.१०१.२१ (द्वित्त्व की भांति बोध कराने वाले चित्त के अज्ञान होने का कथन), ६.२.१०१.२७ (जीवन्मुक्तों में चित्त के अभाव का कथन ; मूढों के चित्त और सत्त्व में तुलना), ६.१.१०१.४९ (स्पन्दरहित चित्त होने का निर्देश)६.१.१०३.२८ (चित्त स्पन्द के सारे जगत की स्थिति का कारण होने का उल्लेख), ६.१.११६ (चित्त से अहंकार के गलने के लक्षणों का कथन), ६.२.४४.५(चित्त भूमि में समाधि बीज द्वारा कृषि का वर्णन), ६.२.५९.१३ (समाधि में क्रमश: चित्ताकाश व चिदाकाश अवस्थाएं प्राप्त करने का वर्णन), ६.२.१३८ (चित्त की सर्वात्मकता प्रतिपादन नामक सर्ग), ६.२.१६९ (विश्रान्त चित्त वर्णन नामक सर्ग), लक्ष्मीनारायण ३.५३.९१ (पांच चित्तों का उल्लेख ) । chitta

References on Chitta