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Chandramaa - Chandrashekhara ( words like Chandramaa / moon, Chandrarekhaa etc.)

Chandrashree - Champaka (Chandrasena, Chandrahaasa, Chandraangada, Chandrikaa, Chapahaani, Chapala, Chamasa, Champaka etc.)

Champaka - Chala (Champaa, Chara / variable, Charaka, Charana / feet, Charchikaa, Charma / skin, Charu, Chala / unstable etc. )

Chaakshusha - Chaamundaa  (Chaakshusha, Chaanakya, Chaanuura, Chaandaala, Chaaturmaasa, Chaandraayana, Chaamara, Chaamundaa etc.)

Chaamundaa - Chitta ( Chaaru, Chaarudeshna, Chikshura, Chit, Chiti, Chitta etc.)

Chitta - Chitraratha ( Chitta, Chitra / picture, Chitrakuuta, Chitragupta, Chitraratha etc. )

Chitraratha - Chitraangadaa ( Chitralekhaa, Chitrasena, Chitraa, Chitraangada etc. ) 

Chitraayudha - Chuudaalaa (Chintaa / worry, Chintaamani, Chiranjeeva / long-living, Chihna / signs, Chuudamani, Chuudaalaa etc.)

Chuudaalaa - Chori  ( Chuuli, Chedi, Chaitanya, Chaitra, Chaitraratha, Chora / thief etc.)

Chori - Chhandoga( Chola, Chyavana / seepage, Chhatra, Chhanda / meter, Chhandoga etc.)

Chhaaga - Jataa  (Chhaaga / goat, Chhaayaa / shadow, Chhidra / hole, Jagata / world, Jagati, Jataa / hair-lock etc.)

Jataa - Janaka ( Jataayu, Jathara / stomach, Jada, Jatu, Janaka etc.)

Janaka - Janmaashtami (Janapada / district, Janamejaya, Janaardana, Jantu / creature, Janma / birth, Janmaashtami etc.)

Janmaashtami - Jambu (Japa / recitation, Jamadagni, Jambuka, Jambu etc. ) 

Jambu - Jayadratha ( Jambha, Jaya / victory, Jayadratha etc.)

Jayadhwaja - Jara  ( Jayadhwaja, Jayanta, Jayanti, Jayaa, Jara / decay etc. )  

Jara - Jaleshwara ( Jaratkaaru, Jaraa / old age, Jaraasandha, Jala / water etc.)

 

 

Puraanic contexts of words like Chola, Chyavana / seepage, Chhatra, Chhanda / meter, Chhandoga etc. are given here.

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Metre/Meter in Sanskrit Poetry

चोरी अग्नि २५८.५५ (चोरी पर दण्ड विधान का कथन), ३२३.८ (चोरी के पाप से मुक्ति हेतु चण्डकपालिनी मन्त्र का उल्लेख), नारद १.१५.३५ (सुवर्ण चोरी का व्यापक अर्थ), १.३०.३४ (सुवर्ण चोरी का प्रायश्चित्त विधान), पद्म ६.३२.४५ (ब्राह्मण धन की चोरी से रौरव नरक प्राप्ति का उल्लेख), ६.२०९.९ (चण्डक नापित द्वारा धन - चोरी के पाप की कथा), ब्रह्माण्ड ३.४.७.२६ (वज्र द्वारा चोरी किए गए धन को किरात द्वारा पुन: चोरी करने व सत्कार्यों में लगाने का वर्णन), मार्कण्डेय १५ (चौर कर्म के कारण प्राप्त नाना योनियों का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर २.१२१ (चौर कर्म के कारण मिलने वाली योनियों का वर्णन), ३.३२८.६८ (चोरी होने पर तण्डुल - परीक्षा का वर्णन ) । chori/choree

 

चोल पद्म २.९४.३४ (चोल देश के राजा सुबाहु का वर्णन), ६.१०८.५ (चोलराज द्वारा विष्णुदास ब्राह्मण से विष्णु- भक्ति की स्पर्द्धा, विष्णु - पार्षद सुशील बनने का वर्णन), ब्रह्माण्ड २.३.७४.६(आण्डीर के ४ पुत्रों में से एक, ययाति वंश, चोल के चोल जनपद के स्वामी होने का उल्लेख), वायु ९९.६/२.३७.६(जनापीड के ४ पुत्रों में से एक, चोल जनपद का राजा),स्कन्द २.४.८.६ (तुलसी माहात्म्य वर्णन के अन्तर्गत तुलसीदल से विष्णु पूजा करने वाले विष्णुदास को चोलराज से पहले मोक्ष प्राप्ति का उल्लेख), २.४.२६+ (चोल नामक राजा द्वारा ब्राह्मण से विष्णु - पूजा की स्पर्द्धा, दोनों को सारूप्य मोक्ष प्राप्ति का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.४२५.८३ (उत्तम पूजा करने से अहंकार युक्त चोलराज का यज्ञ छोडकर देवताओं द्वारा निष्काम भक्त विष्णुदास को दर्शन देने आए भगवान विष्णु के दर्शन हेतु आ जाने का वर्णन), ३.५१.६३ (अन्न - जल को सुलभ जानकर दान में न देने वाले सुबाहु नामक चोलराज द्वारा स्वदेह - मांस भक्षण का वर्णन ) chola

 

चौड स्कन्द १.२.४८ (चौड देशीय ऊर्जयन्त व प्रालेय द्वारा शिवलिङ्ग स्थापना का वर्णन ) ।

 

चौल लक्ष्मीनारायण २.२४.२(बालकृष्ण के चौल संस्कार का वर्णन, चौल की निरुक्ति ) ।

 

च्यवन गणेश १.५.२९ (भृगु - पुत्र च्यवन द्वारा कुष्ठ ग्रस्त राजा सोमकान्त को देखकर द्रवित होना, पिता भृगु से राजा की दशा का वर्णन), देवीभागवत २.८.४२ (च्यवन - पौत्र रुरु द्वारा प्रियतमा को जीवित करने का वर्णन), ४.८ ( रेवा में स्नान करते हुए च्यवन को सर्प द्वारा पाताल ले जाने पर प्रह्लाद से वार्तालाप), ७.२.२५ (शर्याति - कन्या द्वारा अन्धे च्यवन के साथ विवाह का कारण), ७.३ (च्यवन - सुकन्या - शर्याति कथा), पद्म १.३४.१६ (ब्रह्मा के यज्ञ में च्यवन के ग्रावस्तुत होने का उल्लेख), १.१९.२०९ (स्वगन्धी च्यवन द्वारा पुष्कर में सप्तर्षि आश्रम जाने का कथन), २.१४ (च्यवन - पुत्री सुमना द्वारा जन्म - मृत्यु का वर्णन), २.८५.१६ (ज्ञान सम्पन्न होने की इच्छा से च्यवन द्वारा तीर्थयात्रा, च्यवन द्वारा कुञ्जल शुक के चार पुत्रों के साथ संवाद को सुनना), ५.१४.४५ (माता के गर्भ के च्यवन से भृगु - पुत्र च्यवन की उत्पत्ति, दमन राक्षस को भस्म करने व तप करने का वर्णन, सुकन्या द्वारा च्यवन की आँख फोडने व विवाह करने की कथा), ५.१५.६ (सुकन्या द्वारा च्यवन सेवा व अश्विनी कुमारों की पूजा करने से अन्धत्व समाप्ति का वर्णन), ६.४६.१६ (च्यवन के आश्रम में मेधावी मुनि पर मञ्जुघोषा की आसक्ति, मेधावी के पुण्यों का क्षय व पापमोचिनी एकादशी से पापक्षय होने का वर्णन), ब्रह्मवैवर्त्त १.१० (जातिसम्बन्ध निर्णय के अन्तर्गत च्यवन के भृगु - पुत्र होने का कथन), १.१६.१९ (च्यवन द्वारा जीवदान ग्रन्थ की रचना का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.२०.२८(तृतीय तल में च्यवन राक्षस के भवन का उल्लेख), १.२.३२.९८(तप से ऋषिता प्राप्त करने वाले ऋषियों में से एक), २.३.१.९२(च्यवन के पौलोमी से जन्म तथा सन्तति का कथन), २.३.८.३१ (च्यवन व सुकन्या से सुमेधा के जन्म का उल्लेख), २.३.६१.२(पृषध्र द्वारा गुरु की गौ की हत्या पर च्यवन के शाप से शूद्र होने का उल्लेख), भविष्य १.१९ (सुकन्या व अश्विनी कुमारों की कथा), भागवत ९.३.२ (च्यवन द्वारा सुकन्या की प्राप्ति, अश्विनी कुमारों को सोमभाग देने पर इन्द्र के कोप का वर्णन), ९.२२.१(मित्रेय - पुत्र, सुदास - पिता), ९.२२.५(सुहोत्र - पुत्र, कृती - पिता), मत्स्य ५०.२४ (सुधन्वा - पुत्र च्यवन के वंश का वर्णन), ६८.९(च्यवन के शाप से राजा कार्त्तवीर्य के नष्ट होने का उल्लेख), १४५.९२ (तप द्वारा च्यवन को ऋषिता की प्राप्ति का उल्लेख), १९५.१५(भृगु व पौलोमी - पुत्र, आप्नुवान - भ्राता), महाभारत अनुशासन ५०(तुलनीय : स्कन्द पुराण में आपस्तम्ब ऋषि के जालबद्ध होने की कथा), वामन ७ (सर्प द्वारा च्यवन का अपहरण व प्रह्लाद से संवाद का प्रसंग), वायु २३.१७३/१.२३.१६२(१६वें द्वापर में गोकर्ण अवतार के पुत्रों में से एक), ५०.२७(तृतीय तल में च्यवन राक्षस के भवन का उल्लेख), २.४.८९ /६५.८९ (गर्भ च्यवन के कारण च्यवन नाम होने, प्रचेतस में चेतना होने का उल्लेख ; च्यवन व सुकन्या के २ पुत्रों आत्मवान् व दधीचि का उल्लेख), ७०.२६/२.९.२६(सुमेधा - पिता), ८६.२/२.२४.२(मनु - पुत्र पृषध्र द्वारा गुरु की गौ की हिंसा से च्यवन के शाप से शूद्र बनने का उल्लेख), ९९.२०४/२.३७.२०२(मित्रयु - पुत्र?, प्रतिरथ व सुदास - पिता?), ९९.२१७/ २.३७.२१४ (सुहोत्र - पुत्र, कृत - पिता, कुरु वंश), ९९.२३७/ २.३७.२३२ (देवापि - पुत्र), विष्णु ४.१९.७०(मित्रायु - पुत्र, सुदास - पिता, दिवोदास वंश), ४.१९.७९(सुहोत्र - पुत्र, कृतक - पिता, कुरु वंश), विष्णुधर्मोत्तर  १.१७.१७ (च्यवन द्वारा शिक्षित सगर का राज्य वापस मिलने पर च्यवन की बार - बार पूजा करने का उल्लेख), १.३४ (राजा कुशिक की सेवा से प्रसन्न होकर च्यवन द्वारा कुशिक वंश के ब्राह्मण वंश होने का वरदान देने का वर्णन), १.१७० (पुत्र प्राप्ति हेतु युवनाश्व द्वारा च्यवन पूजा करने व कलश का जल पी लेने से कुक्षि में पुत्र उत्पन्न होने की कथा), १.१९९.११ (पुलोमा से च्यवन के जन्म का वर्णन), १.२४२.८ (च्यवन द्वारा राम को लवण वध की प्रेरणा देना ), स्कन्द ५.२.३०.३६ (च्यवनेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : च्यवन - सुकन्या - शर्याति कथा, अश्विनौ को यज्ञ भाग देने पर शक्र के वज्र प्रहार के भय से मुक्ति), ६.५.६ (त्रिशङ्कु के यज्ञ में च्यवन के आग्नीध्र होने का उल्लेख), ६.१८०.३२ (ब्रह्मा के यज्ञ में च्यवन के मैत्रावरुण होने का कथन), ७.१.२७९ (च्यवनादित्य में १०८ नामों से रवि पूजा करने से शुद्ध होने का उल्लेख), ७.१.२८०+ (भृगु - पुत्र च्यवन - शर्याति - सुकन्या की कथा, रूप प्राप्ति, अश्विनौ को यज्ञ में भाग देने पर इन्द्र का वज्र क्षेपण, च्यवन द्वारा मद दैत्य की उत्पत्ति), लक्ष्मीनारायण १.१७४.१८० (दक्ष यज्ञ से बहिर्गमन करने वाले शैव ऋषियों में से एक), १.२०२.७ (१६ चिकित्सकों में से एक), १.३९० (कृष्ण - शाप से गन्धर्व का च्यवन होना, सुकन्या - च्यवन आख्यान), १.५०९.२३(ब्रह्मा के सोमयाग में मैत्रावरुण), १.५४४.४१ (च्यवन द्वारा सूर्य - पूजा, सुकन्या - च्यवन आख्यान), २.२२.४ (च्यवन द्वारा पाताल जाने पर प्रह्लाद को पृथ्वी के तीर्थ बताना), ३.५१.११ (धनुर्धर लुब्धक, भिल्ली तथा चार हंसों द्वारा सपत्नीक च्यवन का चरणामृत पीकर उद्धार का कथन), ३.५२.१२१ (च्यवन द्वारा शुक को सपरिवार कृष्ण मन्त्र देना ) । chyavana

 श्री श्रीनिवास शर्मा ने नेल्लोर से सूचित किया है कि सोमयाग में अश्विनौ को धारा ग्रह द्वारा सोम की आहुति नहीं दी जाती, जबकि अन्य देवों के लिए धारा ग्रह का विधान है । यह तथ्य च्यवन की प्रकृति को स्पष्ट करता है । लोक में शिव की मूर्ति पर जल का सिंचन धारा के रूप में दिखाया जाता है । जिस साधक को केवल कभी - कभी ऐसे सिंचन का, शिर में शीतलता का अनुभव होता हो, उसे च्यवन कह सकते हैं। यह च्यवन भेषज है । सभी रोगों को दूर करता है ।

 

छगल नारद १.६६.११६(छगलण्ड की शक्ति कपर्दिनी का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.७.३७६( पिशाचों के १६ वर्गों में से एक), मत्स्य १३.४३(छागलाण्ड तीर्थ में सती देवी की प्रचण्डा नाम से स्थिति का उल्लेख), २२.७२(छागलाण्ड : श्राद्ध हेतु प्रशस्त तीर्थों में से एक), वायु २३.११६/१.२३.१०८(वाराह कल्प में छागल पर्वत पर श्वेत अवतार के ४ पुत्रों के जन्म का कथन), २३.२११/१.२३.१९९(२५वें द्वापर में मुण्डीश्वर अवतार के पुत्रों में से एक ) ।

 

छत्र अग्नि २४५.१ (राजा के छत्र निर्माण हेतु प्रशस्त द्रव्यों का वर्णन - पक्षैर्वाथ बलाकाया न कार्य्यं मिश्रपक्षकैः । चतुरस्त्रं ब्राह्मणस्य वृत्तं राज्ञश्च शुक्लकं ।। ), २६९.१ (छत्र प्रार्थना - यथाम्बुदश्छादयते शिवायैनां वसुन्धरां । तथाच्छादय राजानं विजयारोग्यवृद्धये ।। ), गरुड १.५१.२६ (छत्र व उपानह दान से असिपत्रवन के मार्ग व तीक्ष्ण आतप को तरने का उल्लेख - तीक्ष्णातपं च तरतिच्छत्रोपानत्प्रदो नरः ॥ यद्यदिष्टतमं लोके यच्चास्य दयितं गृहे ॥ ), गर्ग ५.२.१८(कुमुद अनुचर द्वारा छत्रभ्रमि धारण का उल्लेख), देवीभागवत १२.१०.५ (छत्र के समान तीनों लोकों का संताप दूर रखने वाले मणिद्वीप का वर्णन - छत्रीभूतं त्रिजगतो भवसन्तापनाशकम् ।  छायाभूतं तदेवास्ति ब्रह्माण्डानां तु सत्तम ॥ ), ब्रह्मवैवर्त्त २.२७.१० (छत्र दान से वरुण लोक प्राप्ति का उल्लेख - यो ददाति ब्राह्मणाय छत्रं च सुमनोहरम् ।। वर्षाणामयुतं सोऽपि मोदते वरुणालये ।। ), ४.९३.६० (राधा  द्वारा उद्धव को प्रदत्त छत्र की विशिष्टता का कथन - यद्दत्तं ब्रह्मण प्रीत्या हरये रासमण्डले । सुप्रीत्या राधया तत्र प्रदत्तमुद्धवाय च ।। ), ब्रह्माण्ड १.२.२१.१९(भू आदि ७ लोकों के छत्र की भांति एक के ऊपर एक स्थित होने का उल्लेख - पर्यायपरिमाणेन मंडलानुगतेन च ।। उपर्युपरि लोकानां छत्रवत्परिमंडलम् ।।), ३.४.१५.२३ (विष्णु द्वारा ललिता को छत्र भेंट करने का उल्लेख - साम्राज्यसूचकं छत्रं ददौ लक्ष्मीपतिः स्वयम् । गङ्गा च यमुना ताभ्यां चामरे चन्द्रभास्वरे ॥ ), ३.४.४४.८७(छत्रिका : हृदय चक्र की १२ शक्तियों में से एक - नादात्मिका च चामुण्डा छत्रिका च जया तथा । झङ्कारिणी च संज्ञा च टङ्कहस्ता ततः परम् ॥ ), भविष्य १.५३.२०(हिमाचल द्वारा छत्र बनकर सूर्य के रथ में साथ रहने का कथन - मैनाकश्छत्रदण्डस्तु हिमवांश्छत्रमुच्यते ।।....छत्रदण्डस्तथा क्लेशः क्लेशं छत्रं विदुर्बुधाः ।।), ४.१३८.४३ (छत्र मन्त्र - यथांबुदश्छादयति शिवायेमां वसुन्धराम् ।। तथाच्छादय राजानं विजयारोग्यवृद्धये ।। ), ४.१३९.३ (देवासुर युद्ध में देवताओं द्वारा देवी की छत्र से पूजा का उल्लेख), भागवत १२.११.१९ (आतपत्र को विष्णु द्वारा वैकुण्ठ रूप में धारण करने का उल्लेख - आतपत्रं तु वैकुण्ठं द्विजा धामाकुतोभयम्), मत्स्य २५१.४ (समुद्र मन्थन से उत्पन्न छत्र को वरुण द्वारा ग्रहण करने का उल्लेख - च्छत्रं जग्राह वरुणः कुण्डले च शचीपतिः ।।), वामन ७९.५९ (प्रेत द्वारा दान किए छत्र के शमी वृक्ष बनने का उल्लेख - यच्चातपत्रमददं सोऽयं जातः शमीतरुः। उपानद्युगले दत्ते प्रेतो मे वाहनोऽभवत्।।), ८९.४७(द्युराज द्वारा वामन को छत्र प्रदान करने का उल्लेख - छत्रं प्रादाद् रघू राजा उपानद्युगलं नृगः। कमण्डलुं बृहत्तेजाः प्रादाद्विष्णोर्बृहस्पतिः।।), विष्णुधर्मोत्तर २.१३.७ (छत्र निर्माण में प्रयुक्त सामग्री का वर्णन), २.१६०.३ (छत्र मन्त्र - यथाम्बुदश्छादयति शिवायेमां वसुन्धराम ।।तथाच्छादय राजानं विजयारोग्यवृद्धये ।। ), ३.३०१.३४(छत्र प्रतिग्रह की संक्षिप्त विधि - ईषाधस्तु रथं ग्राह्यं छत्रं दंडे तु वाचयेत् ।। द्रुमाणामथ सर्वेषां मूले न्यस्तकरो द्विजाः ।।), शिव २.५.८.२५ (शिव रथ में कार का छत्र लगाने का उल्लेख - अकारश्च महच्छत्रं मंदरः पार्श्वदंडभाक् ।।), स्कन्द २.७.२.१७ (वैशाख मास में छत्र दान का निर्देश - सलिलं सलिलेच्छूनां छत्रं छायामपीच्छताम् ।। व्यजनं व्यजनेच्छूना वैशाखे मासि भूमिप ।।), २.७.१०.५८ (हेमकान्त द्वारा त्रित मुनि को छत्र देने का प्रसंग - लब्धसंज्ञोऽभवत्तेन ह्युपचारेण वै मुनिः ।।पत्रच्छत्रं क्षत्रदत्तं गृहीत्वा गतविक्लमः ।।), ३.२.१६.७ (छत्रजा देवी की मातृका रूप में स्थापना से भय नाश का कथन), ३.२.३९.३१ (छत्रोटा नामक गोत्र देवी का उल्लेख), ४.१.२९.६३ (छत्रीकृता :गङ्गा सहस्रनामों में से एक), ४.२.८८.६१ (पार्वती रथ में सूर्य - चन्द्र रूपी छत्र का उल्लेख), महाभारत उद्योग ९८.२३(वरुण के छत्र से सोम जैसे निर्मल सलिल वर्षण का उल्लेख), वा.रामायण २.४४.२०(छत्र की वाजपेय याग से उत्पत्ति का कथन - अनवाप्तातपत्रस्य रश्मिसंतापितस्य ते एभिश्छायां करिष्यामः स्वैश्छत्रैर्वाजपेयिकैः), लक्ष्मीनारायण २.१८.२०(अर्यमादि सूर्य - कन्याओं द्वारा कृष्ण को अर्पित छत्र के स्वरूप का कथन - सुवर्णकटवस्त्राढ्यं राजतीकिंकिणीयुतम् । सुवर्णकलशं रत्नदण्डं भासुरमुज्ज्वलम् ।।), २.१७६.२३ (ज्योतिष में छत्र योग), २.२२५.९४(देवों को स्वर्णछत्र दान का निर्देश - देवेभ्यः स्वर्णछत्राणि देवीभ्यः कण्ठपत्रिकाः ।।), ४.७८.३१(नक्षत्र मण्डल से प्रकाशित छत्र का उल्लेख- ब्रह्मणा चाऽर्पितं छत्रं यत्र नक्षत्रमण्डलम् । दिव्यं प्रकाशते नद्धं दिव्यस्वर्गमिवाऽपरम् ।।), महाभारत उद्योग ९८.२४ (वरुणलोक में शीतल जल की वर्षा करने वाले वरुण के छत्र का कथन - एतत्सलिलराजस्य छत्रं छत्रगृहे स्थितम् । सर्वतः सलिलं शीतं जीमूत इव वर्षति ।।), आश्वमेधिक ९२दाक्षिणात्य पृ.६३८२ (श्रीकृष्ण के द्वारका प्रस्थान पर भीम द्वारा कृष्ण पर शतशलाक छत्र धारण करने का उल्लेख ) ; द्र. अहिच्छत्रा । chhatra

 

छन्द अग्नि ३२८ (छन्द गण व गुरु - लघु की व्यवस्था), ३२९ (गायत्री छन्द के आर्षी आदि भेद), ३३० (गायत्री आदि छन्द भेद, देवता, स्वर, वर्ण, गोत्र का वर्णन), ३३१ (उत्कृति आदि छन्द भेद, गण - छन्द व मात्रा - छन्दों का निरूपण), ३३२+ (सम, अर्धसम व विषम वृत्त का वर्णन), ३३५ (छन्द प्रस्तार का निरूपण), कूर्म १.७.५८ (ब्रह्मा के मुखों से छन्दों का प्राकट्य), देवीभागवत  ११.२२.३४(गायत्री आदि छन्दों का प्राणादि वायुओं से सम्बन्ध का कथन), नारद १.५७ (छन्द शास्त्र का संक्षिप्त परिचय), १.८३+ (दश महाविद्याओं की आराधना हेतु छन्द), ब्रह्माण्ड १.२.९.५ (तीन छन्दों का पुरोडाश में एकीकृत होना), १.२.१३.९१(स्वायम्भुव मन्वन्तर में ३३ छन्दज होने का उल्लेख), २.३.७.३०(गायत्री आदि छन्दों के सौपर्ण पक्षी होने का उल्लेख), भविष्य २.१.८.३७ (कुल अक्षरों की संख्यानुसार मन्त्रों के देवताओं का कथन), भागवत ३.१२.४५ (ब्रह्मा के शरीर से छन्द की सृष्टि), १०.४५.४८(गुरु सान्दीपनी द्वारा कृष्ण व बलराम को छन्दों/विद्या के नष्ट न होने का  आशीर्वाद), वायु ३१.४७ (गायत्री, त्रिष्टुप, जगती छन्दों का कथन), ६२.१७६/२.१.१७६(ऋषियों द्वारा वसुधा दोहन में छन्द: पात्र होने का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर ३.३ (विभिन्न प्रकार के छन्दों का वर्णन), स्कन्द ५.३.२८.१३ (त्रिपुर वधार्थ शिव के रथ में छन्दों के रश्मियां बनने का उल्लेख), हरिवंश ३.७१.५१ (वामन के विराट रूप में सम्पूर्ण छन्दों के दन्त होने का उल्लेख), महाभारत उद्योग ४३.५(छन्दों द्वारा पापों से रक्षा न करने का कथन), ४३.५० (छन्दों / वेदों के स्वच्छन्द रूप से परमात्मा में स्थित होने का कथन ), भरतनाट्य १४.४१(१ से लेकर २६ अक्षरों वाले शब्दों की छन्द संज्ञाएं), शौ.अ. ५.२६.५(छन्दांसि यज्ञे मरुतः स्वाहा) ; द्र. मधुच्छन्दा । chhanda

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Metre/Meter in Sanskrit Poetry

छन्दोग भागवत १२.६.५३(व्यास द्वारा छन्दोग संहिता शिष्य जैमिनि को देने का उल्लेख), मत्स्य ९३.१३३(कोटिहोम में छन्दोग द्वारा पश्चिम् में जपनीय सूक्तों के नाम), २६५.२८(मूर्ति प्रतिष्ठा के संदर्भ में छन्दोग द्वारा जपनीय सूक्तों के नाम), वायु ३१.५ (३३ देवों के स्वायम्भुव मनु के छन्दोग होने का उल्लेख), ८३.५४/२.२१.२५(श्रेष्ठ छन्दोग के लक्षणों का कथन), लक्ष्मीनारायण १.५१३.२(छान्दोiग्य विप्र की कन्या के नृप - कन्या से सखीत्व का वृत्तान्त ) ।